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हल्दी से बनाएं देशी एंटीबायोटिक तकिए: किसानों का नया कमाई का स्रोत | Akash Chourasiya | Organic Farming Method |

 नमस्कार साथियों वन्देमातरम् जय गौमाता की 


किसान भाई बहन कचरा प्रबंधन कर अपनी आय बढ़ाये…

हल्दी के वेस्ट कचरे से बनाया देशी एंटीबायोटिक तकिया आय के साथ होते है अनेक फायदे….






आइडिया कैसे आया- कोविड महामारी ने हमारे अपनों को छीना साथ ही हमे बहुत कुछ सिखाया भी है हमें मजबूर किया उन सब पर सोचने जो हम भुला चुके है अपने से दूर कर चुके है इसी परिस्थतिति ने हमारे दिमाग़ में आइडिया आया की दिन में तो माक्स लगाकर हम शायद कोरोना से दूर रख सकते है परंतु रात्रि विश्राम के समय क्या करेंगे माक्स लगा कर तो सोया नहीं जा सकता है इसलिये अगर रूई के तकिये रज़ाई की जगह अगर हल्दी के तकिये रज़ाई का उपयोग किया जाये तो शायद रात्रि के समय भी हम एंटीबायोटिक वातावरण में रह सकते है । इस पर पहला प्रयोग किया और सफल हुआ और अब हजारो किसान भाइयों को निःशुल्क सीखा रहे है यह तकनीक आज देश के सभी भाई बहनों को इसकी संपूर्ण जानकारी साँझा करते है । 







कैसे बनता है तकिया - हम किसान भाई जो भी फसल उगाते है उसके फल को ही आय का साधन मानते है जबकि एसा नहीं है फसल के हर पार्ट का उपयोग किया जा सकता है और उसको आय में शामिल किया जा सकता है ।

कुदरत की बनाई कोई भी वस्तू गुणहीन नहीं है इसी तरह हल्दी के पत्तो में भी ओषधियों गुण होते है इनके पत्तो को छाया में सुखाकर 20 प्रतिशत रूई के साथ या 100 प्रतिशत नरमी पत्तियों के साथ 1.5 फीट वाई 1 फीट के खोल में भर देते है और उसकी सिलाई कर देते है फिर एक और खोल उसके ऊपर चडा देते है । इसी तरह रजाई और गद्दा भी बना सकते है उसे 2 इंच वाई 2.5 इंच के गेप से सिलाई करके बनाया जाता है । 


सावधानियाँ - पत्तियों को लेते समय ध्यान रखना होता है की पत्तियों में नमी ना हो और 100 प्रतिशत सुखी भी ना लगभग 2 से 5 प्रतिशत नमी होना चाहिए और पत्ती का केवल सॉफ्ट पार्ट ही होना चाहिए तकिये के खोल में पत्तियाँ भरते समय मोसम में नमी नहीं होना चाहिए । पत्तियाँ मल्टीलेयर कृषि तकनीक में उगाई गई हल्दी कि होगी तो काफ़ी अच्छा होगा क्योंकि इसकी पत्तियों में एयेसेंस ज़्यादा होता है । पत्तियाँ भरते समय खोल में किसी तरह का गेप नहीं होना चाहिये । 






तकिये की खासियत और फायदे - हल्दी के पत्तो से बनाया गया तकिया एंटीबायोटिक गुणों से भरपूर होता है इसमे मंद एसेंशियल ख़ुशबू भी होती है जो नीद को और भी अच्छा बना देती है , साथ ही एंटीबायोटिक गुण होने के कारण त्वचा संबंधित रोगो में लाभ होता है और यह आपको बेक्टीरिया वायरस जैसी समस्याओं से भी दूर रखता है । 






क़ीमत, खर्च और किसान को लाभ - हमने सभी खर्चो को मिलकर इसकी क़ीमत 500 रू रखी है  जिससे सभी वर्ग के लोग ले सके, इसको बनाने के लिये ग्रामीण महिलाओं को रोज़गार देते हुए बनाया जा सकता है एक एकड़ के पत्तो से लगभग 200 तकिए आराम से बनते है जोकि आय के रूप में लगभग एक लाख रू के होते है सभी खर्चो को निकाल दे तो लगभग 60000 रू प्रति एकड़ शुद्ध लाभ होता है । 






इस तरह किसान अपने फसल वेस्ट से बेस्ट उत्पाद बना कर आय भी बड़ा सकता है साथ ही समाज की स्वास्थ संबंधी समस्याओं का समाधान कर आत्म निर्भरता की तरफ़ आगे बड़ सकता है ।

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#Akash Chourasiya (आकाश चौरसिया)

प्राकृतिक जैविक कृषि सागर मध्यप्रदेश


सौoगांव शहर की नई बातें, हिंदी समाचार- पत्र

सह- संपादक-- मनीष कनौजिया


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